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जवाब बाकी है


मिल गए पर हिजाब बाक़ी है 

फ़िक्र-ए-नाज़-ओ-इताब बाक़ी है 


बात सब ठीक-ठाक है प अभी 

कुछ सवाल-ओ-जवाब बाक़ी है 


गरचे माजून खा चुके लेकिन 

दौर-ए-जाम-ए-शराब बाक़ी है 


झूटे वादे से उन के याँ अब तक 

शिकवा-ए-बे-हिसाब बाक़ी है 


गाह कहते हैं शाम हूई अभी 

ज़र्रा-ए-आफ़्ताब बाक़ी है 


फिर कभी ये कि अब्र में कुछ-कुछ 

परतव-ए-माहताब बाक़ी है 


है कभी ये कि तुझ पे छिड़केंगे 

जो लगन में शहाब बाक़ी है 


और भड़के है इश्तियाक़ की आग 

अब किसे सब्र-ओ-ताब बाक़ी है 


उड़ गई नींद आँख से किस की 

लज़्ज़त-ए-ख़ुर्द-ओ-ख़्वाब बाक़ी है 


है ख़ुशी सब तरह की, नाहक़ का 

ख़तरा-ए-इंक़लाब बाक़ी है 


है वो दिल की धड़क सो जूँ की तूँ 

जी पर उस का अज़ाब बाक़ी है 


जो भरा शीशा था हुआ ख़ाली 

पर वो बू-ए-गुलाब बाक़ी है 


अपनी उम्मीद थी सो बर आई 

यास शक्ल-ए-सराब बाक़ी है 


है यही डोल जब तक आँखों में 

दम बसान-ए-हबाब बाक़ी है 


मिस्ल-ए-फ़र्मूदा-ए-हुज़ूर 'इंशा' 

फिर वही इज़्तिराब बाक़ी है 

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